डॉ अनुसुइया को मुख्यमंत्री ने दिया राज्य अलंकरण सम्मान
महासमुंद। शासकीय महाप्रभु वल्लभाचार्य स्नातकोत्तर महाविद्यालय महासमुंद की हिंदी विभागाध्यक्ष एवं प्राध्यापक डॉ अनुसुइया अग्रवाल डी लिट् को छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग रायपुर के द्वारा 28 नवंबर 2021 को राजभाषा अलंकरण प्रदान किया गया। विदित हो कि महंत घासीदास संग्रहालय, रायपुर के विशाल सभागार में छत्तीसगढ़ राजभाषा स्थापना दिवस समारोह का आयोजन अमरजीत भगत संस्कृति मंत्री छत्तीसगढ़ शासन के मुख्य आतिथ्य, बी अन्बलगन सचिव छत्तीसगढ़ शासन संस्कृति विभाग के विशेष आतिथ्य में आयोजित किया गया था। आयोजन में स्थानीय साहित्यकारों के अतिरिक्त छत्तीसगढ़ के सुदूर प्रांतों से पधारे साहित्यकारों का राजभाषा अलंकरण कार्यक्रम विशेष आकर्षण आकर्षण था। कुल 3 सत्रों में संपन्न इस आयोजन का यह तृतीय सत्र था जब मुख्यमंत्री निवास में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के द्वारा छत्तीसगढ़ी संस्कृति भाषा एवं साहित्य सेवा में सराहनीय योगदान देने के लिए इस प्रांत के 19 साहित्य सेवकों, पत्रकारों, मीडिया कर्मियों, उद्घोषकों, लेखकों एवं कवियों का सम्मान किया गया। जिसमें मुख्यमंत्री ने डॉ अनुसुइया को राजकीय साफा, स्मृति चिन्ह एवं प्रशस्ति पत्र भेंट कर सम्मानित किया। डॉ अनुसुइया विगत दो दशकों से लगातार छत्तीसगढ़ी भाषा बोली में साहित्य लेखन कर रही हैं। उनकी 2002 में प्रकाशित छत्तीसगढ़ के व्रत तिहार अऊ कथा कहिनी स्टेट काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (एससीईआरटी) के द्वारा उस समय राज्य के सभी जिलों में खरीद के लिए अनिवार्य की गई थी। स्कूली शिक्षा के शैक्षिक पहलुओं से संबंधित सरकार की यह स्वायत्त संस्था सरकार को स्कूली शिक्षा से संबंधित नीतिगत मामलों पर सलाह देती है। उन दिनों नया-नया छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ था तब यह किताब लगभग हर स्कूल की लाइब्रेरी में मौजूद थी और आज यही किताब पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर के एमफिल के पाठ्यक्रम में शामिल है इसके अतिरिक्त छत्तीसगढ़ी बोली में लिखी मह पुस्तक एम. ए. हिंदी के पंचम प्रश्न पत्र जनपदीय भाषा एवं साहित्य में भी संदर्भ ग्रंथ के रूप में शामिल है। उनकी किताब छत्तीसगढ़ी लोकोक्तियां और जनजीवन में छत्तीसगढ़ के जनजीवन के खानपान, रहन-सहन, रीति-रिवाज के अतिरिक्त आचार- विचार, व्यवहार आदि पर समग्रता से प्रकाश डालते हुए यहां बहु प्रचलित हाना पर विस्तार से चर्चा की गई है। यह पुस्तक भी विश्वविद्यालय के जनपदीय साहित्य प्रश्न पत्र में संदर्भ ग्रंथ के रूप में शामिल है। इसी तरह उनकी कहावतों की कहानियां पुस्तक प्रौढ़ शिक्षा केंद्र इंदौर के द्वारा प्रकाशित हुई थी जिसका दूसरा एडिशन छप चुका है। इसके अतिरिक्त लगभग 8 किताबें उनकी और भी प्रकाशित है जिसमें विशेष रुप से छत्तीसगढ़ को लेखन का आधार बनाया गया है। अभी-अभी प्रकाशित उनकी कृति छत्तीसगढ़ी बाल साहित्य की भी साहित्य रसिकों के बीच काफी चर्चा है। विदित हो कि डॉ अनुसुइया अग्रवाल समीक्षात्मक ग्रंथों के अतिरिक्त छत्तीसगढ़ी कविता का लेखन भी करती हैं जिसका प्रसारण दूरदर्शन और आकाशवाणी से होता रहता है। विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के पत्र-पत्रिकाओं में भी वे लगातार छप रही हैं। अब तक उनके लगभग 100 से अधिक शोधपत्र प्रकाशित हो चुके हैं। मॉरीशस के 11वां विश्व हिंदी सम्मेलन में उन्होंने केंद्रीय मंच से छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व किया था। छत्तीसगढ़ी भाषा धारा प्रवाह बोलने में दक्ष डॉ अग्रवाल के छत्तीसगढ़ी हाना को सुनकर महंत घासीदास संग्रहालय के सभाकक्ष में पधारे साहित्यकारों का विशाल समूह ही नहीं संस्कृति मंत्री भी गदगद हो उठे। बाद में उन्होंने मुख्यमंत्री निवास में मुख्यमंत्री के समक्ष इसकी पृथक से चर्चा भी की। अलंकरण समारोह के बीच में मुख्यमंत्री ने डॉ अग्रवाल के साथ स्वयं भी छत्तीसगढ़ी हाना बोलकर सभा का दिल जीत लिया।
“बोडी के बैला, घर जिया दमाद…..
मरे चाहे बांचे, जोते ले काम।।*
विदित हो कि अभी-अभी डॉ अनुसुइया को रायपुर साहित्य महोत्सव में साहित्य सेवा के लिए छत्तीसगढ़ की बेटी और श्री राम की माता के नाम पर कोशल्या सम्मान भी प्राप्त हुआ था। इसके अतिरिक्त भी वे अनेक सम्मानों और पुरस्कारों से अलंकृत हैं। संस्कृति विभाग के द्वारा आयोजित इस अलंकरण समारोह में राजभाषा आयोग के सचिव डॉ अनिल कुमार भतपहरी, विवेक आचार्य संचालक संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग विशेष रूप से उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन विजय शर्मा ने काव्यात्मक ढंग से किया। उनके इस अलंकरण पर उनके शुभचिंतकों, साहित्यकार मित्रों, उच्च शिक्षा विभाग के प्राध्यापक साथियों, महाविद्यालय परिवार, स्वजन और छात्र समूह ने अत्यंत हर्ष जताया है।