भारत-जापान संबंधों का एक मजबूत स्तंभ ढह गया
शिंजो आबे के चले जाने से भारत-जापान संबंधों का एक मजबूत स्तंभ ढह गया। जापान के प्रधानमंत्री के रूप में चार बार भारत आने वाले आबे को यहां भरपूर प्यार मिला। जिस ‘विरासत’ को सहेजकर रखने की जिम्मेदारी उन्हें मिली थी, आबे ने उसे और घनिष्ठ बनाया। वाराणसी के घाटों पर गंगा आरती में शरीक होना हो या बुलेट ट्रेन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भारत के भविष्य की झलक दिखाना, आबे वह चेहरा रहे हैं जिसमें भारतीयों को उम्मीद नजर आती थी। वह उन दुर्लभ नेताओं में से एक थे जिन्होंने न सिर्फ जापान को आर्थिक महाशक्ति बनाया, बल्कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र की चुनौतियों से भी निपटे। 2012 में जब शिंजो आबे सत्ता में लौटे तो नारा चला था- ‘
आज जियोपॉलिटिक्स में आबे की दूरदर्शिता साफ नजर आती है। 2007 में भारतीय संसद को संबोधित करते आबे ने QUAD की परिकल्पना की थी। वह ‘बेल्ट एंड रोड’ इनिशिएटिव के पीछे चीन के कुटिल मकसद को पहचानने वाले चुनिंदा जापानी नेताओं में से थे। भारत के साथ आबे का रिश्ता केवल राजनीति तक सीमित नहीं रहा। वह अपने नाना के पीएम रहते भारत आए थे और बचपन में ही खास रिश्ता बना गए थे। इसी रिश्ते के लिए और शिंजो आबे के सम्मान में भारत 9 जुलाई को राष्ट्रीय शोक मना रहा है।जापान के प्रधानमंत्री के रूप में अपने पहले कार्यकाल में ही शिंजो आबे ने भारत का दौरा किया। उस वक्त यूपीए की सरकार थी और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री। 22 अगस्त को भारतीय संसद में उनका संबोधन ‘दो समुद्रों के मिलन’ के रूप में जाना जाता है। इसी भाषण में आबे ने मुक्त और खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र की वकालत की थी। अगले कुछ दिनों में, जापान ने पूर्वोत्तर भारत में निवेश शुरू कर दिया। ऐसा करने वाला जापान पहला देश था। आबे समझ रहे थे कि चीन की विकराल चुनौती से निपटने के लिए उन्हें भारत से अच्छा साझेदार नहीं मिलेगा।
- 2006 में शिंजो आबे और मनमोहन सिंह भारत और जापान के बीच ‘रणनीति और वैश्विक साझेदारी’ पर हस्ताक्षर कर चुके थे। यह भारत-जापान के रिश्तों के और मजबूत होने की दिशा में पहला कदम था। अगले साल जब आबे भारत आए तो दो और साझेदारियां हुईं।
- 2014 में भारत और जापान के रिश्ते को ‘स्पेशल’ दर्जा दे दिया गया। निवेश से लेकर आर्थिक इन्फ्रास्ट्रक्चर, विकास, सिविल न्यूक्लियर टेक्नॉलजी से लेकर डिफेंस में दोनों देश कंधे से कंधा मिलाकर चलते हैं।
- आबे के प्रधानमंत्री रहते भारत और जापान के बीच आर्थिक संबंधों में जबर्दस्त सुधार हुआ। 2012 से 2019 के बीच भारत में जापान से आने वाला प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) 180% तक बढ़ गया था।
- 2020 में कर्ज के रूप में जापान से भारत को मिलने वाली आर्थिक मदद 356.30 बिलियन येन थी। इसके अलावा 5.02 बिलियन येन का अनुदान और 8.7 बिलियन येन का तकनीकी सहयोग भी है।