महासमुंद टाइम्ससामाजिक

मकर संक्रान्ति पर लाखों लेते है सुखा लहरा

 

महासमंद। महासमुंद गरियाबांद जिले के बीच का गांव हंथखोज पूरे जिले नहीं वरन पूरे प्रदेश में प्रसिद्ध है। लाखों महिला पुरुषों द्वारा हंथखोज की सूखे नदी में मकर संक्रांति के दिन सुखा लहरा लिया जाता है। इस सूखे लहरे का प्रचलन इस क्षेत्र में कब से कोई नहीं जानता है। क्षेत्र के पुराने बुजुर्गों से बात चीत करने पर यह जानकारी मिली है कि आज से दो तीन सौ साल पहले यह प्रथा शुरू हुई है। सुखा लहरा लेने और पंच कोसी यात्रा से मानवंक्षित फल और सभी दुखों का अंत हो जाता है ऐसा मानना है। साथ ही इस सुखा लहरा और पंच कोसी यात्रा के लिए यह भी कहा जाता है कि जो लोग चारों धाम की यात्रा नहीं कर सकते वह इस पंच कोसी यात्रा कर ले। चारों धाम की यात्रा और पंच कोसी यात्रा दोनों से एक समान फल मिलता है। हंथखोज के इस नदी में प्रतिवर्ष 14 जनवरी मकर सक्रांति के दिन मेले का अयोजन भी किया जाता है। इस मेले में क्षेत्र के सांसद, विधायक सहित पूरे प्रदेश भर से लोग पहुंचते हैं।

मकर संक्रांति के दिन सुबह से ही हंथखोज के सुखा नदी में सुखा लहरा लेने वालों का तांता लगा रहता ही। यहां नदी के बीचो बीच पहुंच कर भगवान शंकर जी का लिंग बना कर पूजा अर्चना कर लिंग को दोनों हाथों से पकड़ कर लेता जाता है। जैसे ही लिंग को पकड़ कर श्रद्धालु लेटता है। उसके शरीर पर माता शक्ति लहरी का प्रवेश होता और सुख नदी में गोल गोल घुमने लगता है। तब तक घूमते रहते है जब तक रोक कर उसे शांत नहीं कराया जाता है। लोगों का ऐसा मानना है कि जो भी व्यक्ति रेत पर लिंग बना कर पूजा पाठ कर, लेट कर भगवान शिव के लिंग को श्राद्ध से पकड़ता है उसके शरीर पर माता शक्ति लहरी का प्रवेश होता है और उसे मानवंक्षित् फल मिलता ही। साथ दिन तक चलने वाले इस यात्रा को श्रद्धालु पैदल नंगे पांव ही लगभग 150 किलोमीटर की यात्रा कर पूरा करता है।  गौरतलब है कि यह यात्रा कहां से शुरू होती है। गरियाबंद जिले के पटेश्वर महादेव से इस यात्रा की शुरुआत 11 और 12 जनवरी से शुरू की जाती हैं। 12 जनवरी की सुबह यह यात्रा शुरू होती है। लगभग 20 किलो मीटर का सफर कर 12 जनवरी को चम्पारण धाम पहुंचते है और यहां भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा अर्चना कर 13 जनवरी को यहां से निकलते है और उसी दिन फिंगेस्वर महादेव पहुंचते है। 14 जनवरी मकरसंक्रांति की सुबह श्रद्धालु हथखोज माता शक्ति लहरी के दर्शन करने और सुख लहरा लेने पहुंचते है। यहां से सूखा लहरा लेकर श्रद्धालुओं का दल बामनेश्वर महादेव के दर्शन के लिए बम्हनी पहुंचते हैं। यहां से श्रद्धालु कानेश्वर महादेव होते हुए छत्तीसगढ़ का प्रयाग राजिम लोचन कुलेश्वर महादेव पहुंच कर अंतिम दर्शन पूजा पाठ कर इस यात्रा को समाप्त करते हैं। इस यात्रा के दौरान श्रद्धालु 7 नदियों के दर्शन करते हैं। जिसने महानदी, पैरी और सोढ़हू नदी का संगम होता है। इसलिए इसे प्रयाग भी कहा जाता है। इस यात्रा के दौरान श्रद्धालु जिस भोजन का ग्रहण करते है वह स्वयं के द्वारा पका कर किया जाता है। इसलिए इस यात्रा को करने वाले अपने साथ साथ दिनों का राशन की भी व्यवस्था कर निकलते हैं

 

Ravindra Vidani

सम्पादक रविन्द्र विदानी 7587293387, 9644806708

Related Articles

Back to top button
error: Content is protected !!