महासमुंद टाइम्स

अग्निवीर – समझाने और समझने में फेर क्यूँ ?

अग्निवीर – समझाने और समझने में फेर क्यूँ ?

 

अग्निवीर योजना पर आजकल बहुत बात हो रही है । हमारे सेना प्रमुख और पूर्व सेना प्रमुखों का स्पष्ट कहना है (और उनके माध्यम से सरकार का भी) कि सेना कोई रोज़गार या व्यापार नही है , जिसमे देश की सेवा का जज़्बा हो वही आएं और जिन्हें नही आना हो मत आएं । आपकी बात बिल्कुल सही है लेकिन हमारे युवा क्यूँ इस बात को स्वीकार नही कर पा रहे हैं ? कारण एकदम स्पष्ट है कि आपकी शिक्षा व्यवस्था ने उसे देशप्रेम का मतलब ही नही समझाया ।

 

हमारे स्कूल कॉलेज की शिक्षा में देशप्रेम , और वैल्यूज की सीख है ही नही । वैल्यूज की सीख परिवार और स्कूल दोनों पर निर्भर है लेकिन स्कूल की जिम्मेदारी ज्यादा है क्यूँकि बच्चा 6 साल की उम्र से 18 साल तक (और उससे पहले 3 साल नर्सरी या आंगनबाड़ी में) हर रोज़ 6 घण्टे स्कूल में रहकर शिक्षा ग्रहण करता है(और उससे पहले 3 साल नर्सरी या आंगनबाड़ी में) । स्कूल ही बच्चों का जीवन ड्राइव करते हैं सुबह उठने से लेकर रात के सोने तक । सुबह 6 बजे उठकर स्कूल के लिए तैयार होना , 8-2 बजे तक स्कूल फ़िर थोड़ा लंच आराम खेलकूद (बहुत कम समय के लिये) फ़िर ट्यूशन , स्कूल होमवर्क फिर डिनर करके सो जाना । इसलिए वैल्यू टीचिंग की प्राथमिक जिम्मेदारी स्कूलों पर ही है , वैल्यूज के लेसन को अपनी एक्टिविटी और पाठ्यक्रम में सिस्टेमैटिक रूप से सम्मिलित करें ।

 

स्कूल में हमारे बच्चे 6 घण्टे के लिए रहते हैं तो 2 घण्टे कम से कम देशप्रेम,दया,प्रेम,करुणा की बातचीत और एक्टिविटी हो । स्कूल वैल्यू डेवलपमेंट से सम्बंधित होमवर्क और प्रोजेक्ट भी बच्चों को दे सकते हैं । यथा अपने दादा जी को दिनभर क्या हेल्प करते हैं 1 मिनट का वीडियो बनाकर क्लास के व्हाट्सएप ग्रुप में पोस्ट करें । और भी बहुत सारे तरीके हैं । देखिये बच्चों को जो बात सीखने समझने देखने और महसूस करने के अवसर जितनी ज्यादा बार (ज्यादा समय तक) मिलेंगे उसके दिलोदिमाग मे उन बातों की कड़ी उतनी ही गहराती जाएगी और आगे चलकर यही बात निर्धारित करेगी कि हमारे बच्चे बड़े होकर किस प्रकार की सोच वाले हैं । वर्तमान में हमारी स्कूली शिक्षा केवल प्रतिस्पर्धा और रोजगार पाने का साधन बनकर रह गई है । इसलिए हमारे नवयुवक सेना में भर्ती को आजीविका का अवसर प्राथमिक रूप से मान रहे हैं क्यूँकि यही उन्होंने सीखा है -समझा है, बचपन से युवावस्था तक ।

 

तो सरकार यदि चाहती है कि सेना में आने वाले नवयुवक देशप्रेम की सोच को सर्वोच्च रखें तो अपना एजुकेशन सिस्टम (पाठ्यक्रम) पहले सुधारना होगा । आज ज्यादातर युवक सेना की नौकरी को प्राथमिक रूप से रोज़गार के जरिये के रूप में देख रहे हैं और सरकार की बात समझने को तैयार नही हैं तो इसमे दोष हमारे बच्चों का नही है ।

Ravindra Vidani

सम्पादक रविन्द्र विदानी 7587293387, 9644806708

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