केरल सरकार की तरह सब्जियों के समर्थन मूल्य घोषित कर सरकार विपणन की व्यवस्था करे
महासमंद। हम आप सभी एक फार्मूले से अच्छी तरह से परिचित हैं. वह है मांग और आपूर्ति का फार्मूला. सदैव ही देखा गया है कि जब किसी सामान की मांग कम रहती है और आपूर्ति ज्यादा होने पर उस वस्तु के दाम कम हो जाते हैं. इसी तरह जब मांग ज्यादा और आपूर्ति कम हने पर सामानों के दाम आसमान छूने लगते हैं. विगत 50 दिनों से सम्पूर्ण भारत में एक नया फार्मूला देखने में आ रहा है. मांग भरपूर होने तथा आपूर्ति कम होने के बावजूद भी सामानों के दाम कम होते जा रहे हैं. यह नई कहानी है ताजे सब्जियों की।
ऋषि कुमार चन्द्राकार और संजय चंद्राकर ने प्रेसवर्ता में जानकारी दी है कि वर्ष 2017-2018 में भी सब्जियों के दाम लागत से कम हो गए थे. तब किसान अपने उत्पाद यहाँ वहां फेंक रहे थे, जिसे मिडिया ने भी प्रमुखता से दिखाया / छापा था. किन्तु अभी अक्टूबर 2022 से आज तक जो हालात बने हैं वैसा तो कभी नहीं देखा गया. अभी किसानों के पास बम्पर उत्पाद नहीं है, सम्पुर्ण भारत के किसी भी मंडी में देखा जाए तो किसी भी मंडी में मांग से ज्यादा सब्जियां नहीं पहुँच रही है . फिर भी सब्जियों के दाम इतने कम हो गए हैं कि किसान को इसकी लागत भी नहीं मिल रही है. मैंने दिनांक 15 दिसम्बर को 1485 किलो भाटा रायपुर मंडी भेजा मुझे रूपए – 121 का बिल मिला. मतलब मैंने दलाल को 1485 किलो भाटा दिया और रूपए 121 भी देना है।. अब एक इत्तेफाक देखिए कि इसी 15 दिसम्बर को एक दैनिक समाचार पत्र में छपा है कि थोक महंगाई में राहत की खबर। इसमें बताया गया है कि भारत का थोक महंगाई पिछले 21 महीनों के निचले स्तर पर है. यह नवम्बर 2021 में 14.87% था जो अब अक्टूबर 2022 में घटकर 8.39% गया है, मात्र 6.48%.
इसी दौरान सब्जियों के दाम मध्य अक्टूबर 2022 में 17.61% था जो दिसम्बर 2022 में औंधे मुंह गिरकर – 20.08% पर आ गया है, मतलब 37.69% की गिरावट. इतनी बड़ी गिरावट किसी और वस्तु में नहीं हुई है.
ऐसी स्थिति क्यों और कैसे संभव हुआ ? केन्द्र सरकार को अच्छे से पता है कि किसान अपना एक नंबर का उत्पाद बेचने के लिए दलाल को भेजता है. दलाल उसे बेचकर पैसा किसान के खाते में न भेजकर नगद देता है. मतलब दो नंबर में देता है. इसी कारण केन्द्र सरकार ने अपनी एजेंसियों के माध्यम से सभी बड़ी मंडियों के बड़े बड़े दलालों की नकेल कस दी और सब्जियों के दाम रसातल में चले गए.
इसकी गहराई में गए तो पता चला कि देश की थोक महंगाई के लिए केंद्र सरकार जिम्मेदार है. तो उस सरकार ने किसानों का गला घोंटते हुए थोक महंगाई में नियंत्रण करने का दावा कर रहा है. जबकि केंद्र सरकार किसानों की आय 2022 तक दोगुनी करने का दावा भी करती थी. समस्त खाद और दवाइयों के दाम भी केन्द्र सरकार के हाथों में है जिसके दाम दो से चार गुणा तक बढ़ गए हैं.
एक सवाल हमेशा उठता है कि फ़ूड पार्क बनाकर प्रोसेसिंग किया जाए. हम यहाँ बताना अपनी जिम्मेदारी समझते हैं कि सब्जियों में सिर्फ टमाटर और कुछ फलों की ही प्रोसेसिंग की जा सकती है. सभी सब्जियों की नहीं.
हमारी केन्द सरकार से मांग है कि फल और सब्जियां एक कच्चा धंधा है. इस कारण इसे थोक महंगाई की गणना की सूचि से अलग कर दिया जाए. साथ ही छत्तीसगढ़ सरकार से मांग करते हैं कि जिस तरह केरल सरकार के द्वारा सब्जियों के समर्थन मूल्य घोषित के विपणन की व्यवस्था किए गए हैं. उसका अध्ययन करवा कर छत्तीसगढ़ में भी लागू कर सब्जी और फल के किसानों को राहत पहुंचाई जा सकती है.
यदि ऐसा नहीं होता है तो अब किसान क्या करे ? उसके पास अब आत्महत्या करने के अलावा बचा ही क्या है ?