क्वांटम सिद्धांत @100: विज्ञान की नई क्रांति में भारत की बुलंद दस्तक

चंद्रशेखर मिथलेश, आशी बाई गोलछा उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, महासमुंद
विश्व क्वांटम दिवस के रूप में 14 अप्रैल 2025 को वैज्ञानिक समुदाय क्वांटम यांत्रिकी की सौवीं वर्षगांठ मना रहा है। क्वांटम एक क्रांतिकारी सिद्धांत है जिसने सबसे छोटे पैमाने पर ब्रह्मांड की हमारी समझ को मौलिक रूप से बदल दिया है।
15 वर्ष के दसवीं कक्षा के छात्र मैक्स प्लांक ने अपने इस विचार (जिसे आज क्वांटम सिद्धांत कहते हैं) पर काम करने का विचार अपने गुरु को दिया तो गुरु ने हतोत्साहित करते हुए कहा —”भौतिकी में अब नए आविष्कारों की संभावनाएं खत्म हो चुकी है। इसमें जितना शोध अनुसंधान होने के संभावना थी वो पूरी हो चुकी है। अतः इस विचार को छोड़ दो।” किंतु यह मैक्स की दृढ़ इच्छा थी कि उसने अपने विचार को शोध के रूप में आगे बढ़ाया और क्वांटम सिद्धांत के आधार पर विकिरण कण की खोज की। 1918 में मैक्स प्लान को उनके इस ‘विकिरण नियम ’के लिए भौतिक का नोबेल पुरस्कार भी मिला इस प्रकार आधुनिक भौतिकी के नवीन युग की शुरुआत हुई।
*अप्रैल 14 ही क्यों* :—यह दिनांक प्लांक स्थिरांक h=4.14 x 10^-15 इलेक्ट्रॉन वोल्ट -सेकंड के पहले तीन अंको को राउंड फिगर में 4.14 अंक के संदर्भ में चुनी गई है, जो क्वांटम भौतिकी में एक मौलिक स्थिरांक है।
*क्वांटम भौतिकी में भारत का योगदान:—*
सन 1924 में भारत के सत्येंद्र नाथ बोस ने फ्लाइंग के विकिरण नियम को समझने के लिए एक सर्वथा नवीन विधि सुझाई। उन्होंने प्रकाश की कल्पना द्रव्यमान रहित कणों के एक गैस पिंड के रूप में की। इसे फोटोन गैस के रूप में मान्यता मिली। बाद में इस मान्यता को अल्बर्ट आइंस्टीन ने भी मान्यता दी। प्रकाश की द्वैत प्रकृति, नील्स बोर का हाइड्रोजन का परमाणु मॉडल, हाइजेनबर्ग का मैट्रिक्स यांत्रिकी एवं श्रोडिंगर की तरंग समीकरण आदि क्रमिक शोधों का आधार भी क्वांटम सिद्धांत ही था।
विज्ञान पहले परमाणु को ही पदार्थ के मूलभूत कण के रूप में जानता था।फिर आगे की खोज से पता चला कि परमाणु भी इलेक्ट्रॉन प्रोटॉन और न्यूट्रॉन से बना है। कालांतर में और अधिक शोध होते रहे और क्वांटम भौतिकी ने क्वार्क और लैपटॉन के 12 सूक्ष्मतम कणों को(जो की अत्यंत कम द्रव्यमान वाले के होते है) मूलभूत कण माना ,इन्हीं मूल कणों से सृष्टि के जड़ एवं चेतन स्वरूप अस्तित्व में आए हैं।
क्वांटम मैकेनिक्स की खास बात यह भी है कि इसकी शुरुआत के बाद भारतीय एवं पश्चिमी वैज्ञानिक यह मान रहे हैं कि भारतीय भाववादी सिद्धांत को जाने बिना अणु या कण में चेतना का आकलन नहीं किया जा सकता। क्वांटम भौतिकी और कृत्रिम बौद्धिकता एक तरह से चेतना के भाववादी सिद्धांत को ही अस्तित्व में लाने के उपाय हैं।
*क्वांटम कंप्यूटर:—* मैक्स प्लांक की क्वांटम भौतिकी अब क्वांटम यांत्रिकी बनने जा रही है। आज के कंप्यूटर मे अंश या ‘बीट’ ईकाई पर काम होता है जिसमें ‘शून्य’ और ‘एक’ की भाषा में ही की—बोर्ड से दिए गए निर्देश को ग्रहण करके समझा जाता है और परिणाम दिए जाते हैं।
वही क्वांटम कंप्यूटर क्यूबिट या कण अंश इकाई पर काम करेगी। क्वांटम कंप्यूटर की विलक्षणता यह होगी कि वह एक साथ ‘शून्य’और ‘एक’ दोनों को ग्रहण कर लेगा। परिणाम स्वरुप यह दो क्यूबिट में एक साथ चार परिणाम देने में सक्षम होगा और इस अद्वितीय क्षमता के कारण इसकी गति अभी के कंप्यूटर से कहीं ज्यादा (बहुत ज्यादा) होगी।
अविष्कार से पहले इसकी क्षमताओं का मूल्यांकन करने वाले देश इसके अनुसंधान पर बड़ी धनराशि खर्च कर रहे हैं। विश्व के सभी विकसित देश एवं बड़ी-बड़ी कंपनियां क्वांटम कंप्यूटर की होड़ में शामिल है। फिलहाल इस क्षेत्र में कुशल युवाओं की संख्या बहुत कम है कई कंपनियां कल्पनाशील एवं योग्य लोगों की तलाश में है। कृत्रिम बौद्धिकता, डेटा सुरक्षा, संचार तकनीकी, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य जैसे दैनिक जीवन का क्षेत्र हो या विशाल ब्रह्मांड के रहस्य की खोज, क्वांटम कंप्यूटर हर क्षेत्र में नई क्रांति का सकता है। यह भी कहा जा रहा है कि इस क्षेत्र में जो देशभर चढ़कर नेतृत्व करेगा,वही दुनिया पर शासन भी करेगा।
*भारत और क्वांटम तकनीकी:—* विश्व के सभी विकसित देश एवं बड़ी-बड़ी कंपनियां क्वांटम कंप्यूटर की होड़ में शामिल है, क्वांटम कंप्यूटर की क्षमता को देखते हुए भारत ने भी वर्ष 2023 _24 से 2030 _31 तक क्वांटम कंप्यूटर बनाने की तकनीक पर नवीन शोध हेतु 6003.65 करोड रुपए का बजट प्रस्तुत किया है। भारत पहली बार शोध कार्य हेतु इतनी बड़ी धनराशि खर्च कर रहा है। देश की सुरक्षा और शक्ति को बढ़ाने के लिए यह अतिआवश्यक कार्यों में से एक है।