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साडा अध्यक्ष सतीश जग्गी की मेहनत लाई रंग, देश विदेश से विश्व संगिती कार्यक्रम में शामिल हुए लोग

 

महासमुंद। सिरपुर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष सतीश जग्गी की मेहनंत ने लाई रंग। सिरपुर में आयोजित विश्व संगिती कार्यक्रम में पहुंचे देश विदेश से लोग। कार्यक्रम के अतिथियों ने सतीश जग्गी को किया अस्वस्थ, विश्व पटल पर सिरपुर को पहुंचाने में करेंगे पूरा सहयोग।

पुरातात्विक स्मारकों, समृद्ध परम्परा, सांस्कृतिक विरासत से समृद्ध सिरपुर में आयोजित तीन दिवसीय विश्व संगीति कार्यक्रम का शुभारम्भ 7 सितम्बर को बतौर मुख्य अतिथि राज्य शासन के वन, आवास एवं पर्यावरण मंत्री मोहम्मद अकबर ने किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता नागार्जुन फाउंडेशन सिरपुर के अध्यक्ष पूज्य भदन्त आर्य नागार्जुन सुरेई ससाई एवं कल्चरल सेंटर ऑफ एच.एच. दलाई लामा तिब्बत हाउस के डायरेक्टर गेशे दोरजी दामदुल ने किया। सी एस आई डी के अध्यक्ष नंदकुमार साय , पुरातत्वविद, नागपुर महाराष्ट्र लेखक डॉ. सत्यजीत चन्द्रिकापुरे, ट्रेव्हल एंड टूरिज्म विभाग महाराष्ट्र डायरेक्टर डॉ. प्रियदर्शी एम. खोब्रागड़े के विशिष्ट आतिथ्य में हुआ शुभारंभ।

विश्व संगीति कार्यक्रम को संबोधित करते हुए वन एवं पर्यावरण मंत्री मोहम्मद अकबर ने कहा कि सिरपुर एक ऐतिहासिक पुरातात्विक नगरी है। यहां विश्व संगीति कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। इस आयोजन से सिरपुर की प्रसिद्धि देश-विदेश तक जाएगी ।उन्होंने कहा कि यहां बौद्ध समाज के अनुयाई उपस्थित है,उनका स्वागत है। उन्होंने कहा कि सिरपुर के विकास के लिए सिरपुर विकास प्राधिकरण के माध्यम से पर्याप्त धनराशि की व्यवस्था सरकार द्वारा की गई है। इससे क्षेत्र के विकास और पर्यटन के मानचित्र में सिरपुर का नाम दर्ज होगा ।उन्होंने कहा कि प्राधिकरण के माध्यम से सिरपुर के विकास को पुनर्जीवित करने का कार्य हमारी सरकार द्वारा किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि यह प्राधिकरण आवास एवं पर्यावरण विभाग के अंतर्गत आता है,जिसकी जिम्मेदारी मेरी है। उन्होंने कहा कि क्षेत्र के अंतर्गत विकास के लिए जो भी आवश्यकता होगी दिया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि चूंकि यह वनक्षेत्र है इसलिए ग्राम सभा के प्रस्ताव पर सामुदायिक विकास के लिए एक हेक्टेयर जमीन दी जा सकती है।उन्होंने बताया कि इसके अंतर्गत 17 ग्राम पंचायत के 34 ग्राम शामिल है। इस तीन दिवसीय कार्यक्रम के आयोजन के लिए उन्होंने बधाई दी ।

कार्यक्रम में पहुंचे की सी एसआईडी के अध्यक्ष नंद कुमार साय ने कहा कि सिरपुर हमारे प्राचीन इतिहास का प्रतिबिंब है । सिरपुर के तट पर ही ऐतिहासिक वैभव और संस्कृति का पूरा संसार है। कई साल पहले से ही दुनिया भर के लोग यहां आते जाते रहे हैं। आज श्रीपुर का वैभव देश दुनिया में चमक रहा है।  सतीश जग्गी सिररपुर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष ने कहा कि आज इस गरिमामय कार्यक्रम का आयोजन सिरपुर के ऐतिहासिक महत्व को देश दुनिया तक पहुंचाने की दिशा में महत्वपूर्ण आयोजन है। प्राधिकरण का गठन हालांकि वर्ष 2015 में किया गया लेकिन असली विकास 2018 के पश्चात हो रहा है ।उन्होंने कहा कि अब प्राधिकरण के पास खुद का कार्यालय, अधिकारी ,स्टाफ और संसाधन है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री के इच्छा अनुरूप सिरपुर के विकास में कोई कमी नहीं होगा। हम सिरपुर को वर्ल्ड हेरिटेज की ओर मान्यता दिलाने में आगे बढ़ रहे हैं ।इस दौरान संगीति कार्यक्रम में अंचल सहित देश के विभिन्न स्थानो से अतिथि लोग पहुंचे हैं। कार्यक्रम 9 सितंबर तक जारी रहेगा।

सिरपुर में आयोजित विश्व संगिती कार्यक्रम के दूसरे दिन विश्व प्रसिद्ध दलाई लामा ने कार्यक्रम के लिए विशेष तौर से एक वीडियो संदेश भेजा। जिसमें दलाई लामा ने अपने प्रथम छत्तीसगढ़ आगमन और सिरपुर से जुड़ी खास बातों का उल्लेख किया। दलाई लामा द्वारा कहे वीडियो संदेश का हिन्दी अनुवाद त्रिलोचन चावला ने सुनाई।

दलाई लामा के मैसेज शब्दश:

महान गुरु नागार्जुन के विषय में

एक बार, जब मैं छत्तीसगढ़ में रायपुर के पास एक तीर्थ स्थान पर जा रहा था, तो मैं एक नदी के पास बैठ गया। हमें बताया गया था कि पास में ही एक गुफा थी जहाँ गौरवशाली रक्षक आर्य नागार्जुन ने तपस्या की थी। नागार्जुन ने द फंडामेंटल वर्सेज ऑफ द मिडिल वे [मूलमध्यमकारिका] और द ज्वेल गारलैंड [ रत्नावली] सहित कई अन्य ग्रंथ लिखे, लेकिन उनका प्रमुख कार्य फंडामेंटल वर्सेज था। यह पुस्तक चंद्रकीर्ति के ग्रंथ मध्य मार्ग में प्रवेश [मध्यमकावतार] के साथ-साथ अन्य लेखकों की टिप्पणियों का आधार थी। इन सभी ग्रंथों में सबसे महत्वपूर्ण नागार्जुन का मौलिक छंद है, जो बताता है कि शून्यता में पूरी तरह और सटीक रूप से अंतर्दृष्टि कैसे प्राप्त की जाए । यह एक ऐसी किताब है जिसका मैं बचपन से ही काफी शौकीन रहा हूं।

जिस नदी तट का मैंने पहले उल्लेख किया था, उसके पास मुझे एक सफेद शंख मिला और मैंने सोचा कि यह कोई धर्म शंख होगा। और चूँकि हमें बताया गया था कि पास में ही एक गुफा थी जहाँ नागार्जुन ने ध्यान किया था, मैंने सोचा कि यह एक शुभ खोज है।

मैं शून्यता के बारे में नागार्जुन के मध्य मार्गीय दृष्टिकोण की व्याख्या से पूरी तरह आश्वस्त हूं। यह मेरे दैनिक अभ्यास को रेखांकित करता है। मुझे लगा कि नागार्जुन की गुफा के आसपास नदी के किनारे सफेद शंख मिलना शुभ है। हम धर्म शंख बजाने की बात करते हैं। शंख वहीं नदी तट पर था, जाहिर तौर पर वह किसी का नहीं था, इसलिए मैंने उसे उठा लिया और अपने साथ ले गया। इन दिनों मैं इसे उस कमरे में रखता हूं जहां मैं अपनी प्रार्थनाएं करता हूं ताकि मुझे अपनी क्षमता के अनुसार धर्म शंख बजाने की याद दिला सकूं।

मैं संरक्षक नागार्जुन का अनुयायी हूं और उनमें मेरी पूरी आस्था है. मैंने उनके मौलिक श्लोक कई बार पढ़े हैं। यह पुस्तक शांतिदेव के बोधिसत्व मार्ग और चंद्रकीर्ति के मध्य मार्ग में प्रवेश का स्रोत थी। इसमें महान नागार्जुन ने बुद्ध की विशाल और गहन शिक्षाओं को शास्त्रीय उद्धरणों और तर्क के आधार पर, लेकिन विशेष रूप से तर्क के आधार पर स्पष्ट किया।

मुझे यह जानकर खुशी हुई कि बौद्ध दर्शन पर केंद्रित एक अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध शिखर सम्मेलन शीघ्र ही सिरपुर में आयोजित किया जा रहा है, छत्तीसगढ़. मैं इसकी सराहना करता हूं और इसमें भाग लेने वाले सभी लोगों को अपनी शुभकामनाएं देना चाहता हूं।

चाहे लोगों में धार्मिक आस्था हो या न हो, अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि वे अपना मन बदल लें। विश्व शांति केवल आंतरिक शांति के आधार पर ही बनाई जा सकती है। केवल हथियारों के प्रसार को सीमित करने से शांति प्राप्त नहीं होगी। सच्ची शांति वह है जो मन के भीतर होती है और वह शांति आम तौर पर विनाशकारी भावनाओं के उत्पन्न होने से बाधित होती है। नागार्जुन के मौलिक छंद और चंद्रकीर्ति के मध्य मार्ग में प्रवेश गहन तरीके से बताते हैं कि इन विनाशकारी भावनाओं का प्रतिकार कैसे किया जाए।

जहां तक मेरा सवाल है, मैं हर दिन नागार्जुन और चंद्रकीर्ति की किताबों की पंक्तियों का पाठ करता हूं और उन पर विचार करता हूं, जो मुझे बहुत उपयोगी लगता है। जैसा कि मैंने पहले ही कहा है, जो चीज़ हमारे मन की शांति को भंग करती है वह अहंकार और क्रोध जैसी विनाशकारी भावनाएँ हैं । चाहे हम किसी धर्म का पालन करें या न करें और चाहे हम बौद्ध, मुस्लिम, ईसाई या हिंदू हों, हम सभी के भीतर समान विनाशकारी भावनाएं हैं। और ये भावनाएं हमारे मन की शांति को भंग करती हैं। भगवान या बुद्ध से प्रार्थना करना विनाशकारी भावनाओं का मुकाबला करने का तरीका नहीं है। इसके बजाय हमें जो करना चाहिए वह है अपने मन और भावनाओं की कार्यप्रणाली की समझ विकसित करना। तब हमें पता चल जाएगा कि किन विनाशकारी भावनाओं पर कौन सा मारक प्रयोग करना है। मैंने अनुभव से सीखा है कि इस तरह उनसे निपटकर हम उनकी ताकत को कम कर सकते हैं।

जब आप बोधिचित्त के जागृत मन और शून्यता की अंतर्दृष्टि को अपने अभ्यास में एकीकृत करते हैं तो आप शारीरिक और मानसिक कल्याण का अनुभव करेंगे। यदि आप नागार्जुन और उनके आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, आर्यदेव के दार्शनिक दावों से परिचित होने के परिणामस्वरूप मानसिक शांति प्राप्त करते हैं, तो आप समझेंगे कि वे केवल प्रार्थनाओं के पाठ पर नहीं बल्कि तार्किक तर्क पर भरोसा करते थे। यह ध्यान में रखने योग्य एक महत्वपूर्ण बात है।

आज विश्व में हर जगह शिक्षा के प्रति गहरी रुचि है। यदि हम लोगों को उनकी सामान्य शिक्षा के हिस्से के रूप में विनाशकारी भावनाओं की कमियों के बारे में अधिक जागरूक कर सकें, तो यह बहुत प्रभावी होगा। केवल बुद्ध या ईसा मसीह से प्रार्थना करने के बजाय, बेहतर होगा कि हम अपने मन को बदलने में सक्षम होने के लिए उनकी शिक्षाओं का अध्ययन करें।

हालाँकि मैं आपके सम्मेलन में शामिल नहीं हो पाऊँगा, फिर भी प्रार्थना करता हूँ कि इसका सार्थक परिणाम निकले। यह न मानें कि आपके साथी प्रतिभागी धार्मिक लोग हैं। चाहे उनकी धार्मिक आस्था हो या न हो, और चाहे वे किसी भी धार्मिक परंपरा से हों, चूँकि आप गैर-सांप्रदायिक भावना से एकत्रित होंगे, मुझे आशा है कि उद्देश्य उन साधनों का परिचय देना होगा जिनके द्वारा हर कोई मन की शांति प्राप्त कर सके।

आपके शिखर सम्मेलन की सफलता के लिए मेरी प्रार्थनाओं और शुभकामनाओं के साथ।

Ravindra Vidani

सम्पादक रविन्द्र विदानी 7587293387, 9644806708

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