गरीब की यहां कौन सुनता है साहब…अब तक शासन की किसी योजना का नहीं मिल सका लाभ
20 सालों से पुनीत लगा रहा सरकारी दफ्तरों के चक्कर
महासमुंद। छत्तीसगढ़ सरकार और जिला प्रशासन के खोखले वादे की पोल खोलती है पचरी के गरीब परिवार की कहानी। बंद एसी कमरे में बैठ कर जनता के हित की बड़ी बड़ी बातें करने वाले सरकारी अधिकारी कर्मचारियों को इस गरीब पुनीत राम की तकलीफे नहीं दिखी, और इन्हे दिखे भी कैसे इन्हे तो बस नेताओं के इशारे पर काम करना आता है। पुनीत राम टंडन जो पिछले 20 साल से शासन की किसी भी योजना का लाभ नहीं ले पाया, ऐसे कमजोर तपके के लोगों की यहां सुनता कौन है। सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाते लगाते इस गरीब की चप्पलें घीस गई पर शासन की योजनाओं का लाभ लेने जरूरी कागजात नही बन पाया। महासमुंद जिले में लाखों की तादात में उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, गुजरात सहित देश भर के कई प्रांत के लोग यहां रहते है और उनके पास निवास प्रमाण पत्र, वोटर आईडी, जॉब कार्ड, राशन कार्ड सब मिलेगा। पुनीत टंडन की बात सुन पत्थर के भी आंखों से आंसू निकल आए, पर इन अधिकारियों का दिल इस गरीब के लिए नहीं पसीज रहा।
गौरतलब है की महासमुंद जिला कार्यालय से लगभग 48 किलो मीटर दूर महासमुंद ब्लॉक का एक ग्राम पंचायत पचरी जहां पुनीत राम टंडन पिता स्व. चैतुराम टंडन अपने परिवार के साथ इस गांव में जन्म से निवास करता है। मजदूरी कर अपने परिवार का पालन पोषण जैसे तैसे करता है। पिछले 20 साल से पुनीत टंडन शासन की किसी भी योजना का लाभ नहीं ले सका है। अब तक आधारकार्ड, राशन कार्ड इस गरीब का नहीं बन सका है। पुनीत के पास सिर्फ मतदाता परिचय पत्र है। जिसके सहारे ये अब तक अपने लिए निकम्मे जन प्रतिनिधि चुन रहा है। वोट तो सभी इस गरीब के पास मांगने आते है लेकिन इसकी मदद करने को नही आता।
पचरी निवासी पुनीत टंडन अपनी आप बीती सुनाते हुए कहता है कि पिछले 20 सालों से महासमुंद, झलप, पटेवा बागबाहरा, ग्राम के सरपंच, सचिव सहित सरकारी विभाग के चक्कर काट रहा हूं लेकिन कोई प्रमाण पत्र नहीं बनवा पाया। सरकारी दफ्तरों में नियमों का हवाला दे दे कर पीछले 20 में एक आधार कार्ड नहीं बन पाया। आधारकार्ड नहीं होने से अब तक ना पुनीत टंडन का राशन कार्ड नहीं बना। बिना आधार कार्ड, बिना राशन कार्ड के पुनीत राम टंडन का आज तक बैंक का खाता नहीं खुल पाया। राशन कार्ड, आधार कार्ड नहीं होने से मनरेगा जॉब कार्ड नहीं बन पाया। जिस वजह से पुनीत को सरकार की योजनाओं में से एक मनरेगा में काम नही मिला। जो इस गरीब परिवार का हक है।
लगातर बढ़ती मंहगाई के बोझ से दबता जा रहा है। टूटे फूटे मकान में अपने परिवार के साथ जीवन यापन करने को मजबूर है। आपको ये जानकर हैरानी होगी के 2020_21 में पुनीत राम टंडन के नाम से प्रधानमंत्री आवास स्वीकृत हुआ था लेकिन आवश्यक दस्तावेज के आभाव में प्रधान मंत्री आवास योजना का भी लाभ पुनीत राम टंडन नही ले सका।
जिस वजह से पुनीत अपने कच्चे मिट्टी के टूटे फूटे घर में रहने को मजबूर है। सरकारी दफ्तरों में इस गरीब की बातें कोई सुनने को तैयार नहीं है। नियम कानून बता कर सभी दफ्तरों ने पुनीत को 20 बीस साल से लौटाया जा रहा है।